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Showing posts from July, 2009

“रेगिस्तानी जहाज” के कहर से सफाचट होती औषधीय वनस्पतियाँ और वन्य जीव

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-57 - पंकज अवधिया “रेगिस्तानी जहाज” के कहर से सफाचट होती औषधीय वनस्पतियाँ और वन्य जीव “न जाने जंगल को किसकी नजर लग गयी है, छोटी वनस्पतियाँ खोजे नही मिलती है। हम जंगल मे काफी भीतर तक चले जाते है फिर भी उपयोगी वनस्पतियो का नामोनिशान नही मिलता है। साहब, क्या कोई कीडा देखा है आपने जो जंगल के जंगल साफ कर दे?” पिछली बहुत सी जंगल यात्राओ के दौरान पारमरिक चिकित्सको की ऐसी बाते मुझे सुनने को मिल रही थी। मै उनके साथ जंगल मे अन्दर तक गया भी पर कारण का पता नही लगा। इस बार की जंगल यात्रा के दौरान मेरा सारा ध्यान औषधीय कुकुरमुत्तो पर था। हमने गाडी से एक घाटी पर चढाई की और जल्दी ही चोटी पर आ पहुँचे। अचानक ही सडक के किनारे जंगल के थोडा भीतर एक अजीब सा व्यक्ति दिखायी दिया। वह वेशभूषा और चेहरे-मोहरे से छत्तीसगढ का नही लग रहा था। मैने सुना था कि पहाडी के इस भाग मे वन्य पशु बहुलता से है। हम गाडी से उतरना पसन्द नही करते है जहाँ, वहाँ वह व्यक्ति आराम से खडा था। मैने गाडी पीछे करने का मन बनाया। गाडी को पीछे करने पर वह व्यक्ति घने जंगल मे घुसने लगा। तब तक साथ चल रहे पारम्परिक चिकि

जैव-विविधता के गढ देवस्थल, अंकोल, झगडहीन, डाफर कान्दा और पारम्परिक चिकित्सक

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-56 - पंकज अवधिया जैव-विविधता के गढ देवस्थल, अंकोल, झगडहीन, डाफर कान्दा और पारम्परिक चिकित्सक हम सपाट मैदानी क्षेत्र मे लगातार चले जा रहे थे। चारो धान के खेत थे। जंगल का नामोनिशान नही था। धान के खेत मे किसान बडी संख्या मे अपने कार्यो मे लगे हुये थे। अचानक हमे एक स्थान पर घने वृक्षो का समूह दिखायी दिया। साथ चल रहे लोगो ने कयास लगाया कि शायद कोई बडा तालाब होगा। पर जब उस स्थान तक पहुँचे तो पता चला कि वह पास के गाँव के पवित्र स्थल है जहाँ ग्राम देवता विराजते है। उस स्थान मे वृक्ष इतने अधिक घने थे कि हमे दिन मे अन्दर जाने के लिये टार्च का सहारा लेना पडा। इस बीच हमारी ग़ाडी देख पास के खेतो से कुछ किसान आ गये और उस स्थान की महिमा बताने लगे। उह्नोने बताया कि यह स्थान पहले घने जंगल मे हुआ करता था। साल मे एक बार गाँव के बैगा के साथ लोग बडा जोखिम उठाकर यहाँ आया करते थे। आज तो जंगल पूरी तरह से साफ हो चुके है। केवल यही स्थान बचा है। इस स्थान से वृक्ष की कटाई प्रतिबन्धित है। पर जैसा कि आप जानते है कि प्रतिबन्ध इसे तोडने वालो को अक्सर उकसाता है। यहाँ भी ऐसा ही ह

ग्रहण के दौरान उपयोग की जाने वाली वनस्पतियो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-55 - पंकज अवधिया ग्रहण के दौरान उपयोग की जाने वाली वनस्पतियो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान सूर्य ग्रहण से कुछ घंटो पहले जब मै यह लेख आरम्भ कर रहा हूँ तब मेरे पास रात भर जागने के लिये भरपूर पानी रखा हुआ है। मौसम बहुत ठंडा हो गया है क्योकि चौबीस घंटो से भी अधिक समय से घनघोर वर्षा हो रही है। मेरे पास पीने के लिये जो पानी है उसमे तुलसी की पत्तियाँ डाल दी गयी है। घर मे रखी सभी भोज्य सामग्रियो मे तुलसी मौजूद है। मै बचपन से देख रहा हूँ कि किसी भी ग्रहण के समय तुलसी का इसी तरह प्रयोग किया जाता है। ऐसा नही है कि ग्रहण के समय केवल तुलसी का ही प्रयोग किया जाता है। देश के अलग-अलग भागो मे अलग-अलग प्रकार की वनस्पतियो के प्रयोग के उदाहरण मिलते है। मुझे याद आता है, बस्तर मे एक पारम्परिक चिकित्सक के साथ मै ग्रहण की चर्चा कर रहा था। उन्होने बताया कि ग्रहण के समय मंजूरगोडी नामक वनस्पति का महत्व बढ जाता है। इस वनस्पति को उन बेशकीमती वनौषधीयो के साथ रख दिया जाता है जिनका उपयोग पारम्परिक चिकित्सक साल भर करते है। मंजूरगोडी अपने आप मे एक बेशकीमती वनस्पति है। बहुत से पारम्परिक चि

वनस्पतियो का पारम्परिक उपचार और इससे विषैले साँपो से बचाव

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-54 - पंकज अवधिया वनस्पतियो का पारम्परिक उपचार और इससे विषैले साँपो से बचाव कल रात से तेज बारिश शुरु हो गयी है। अब हफ्तो तक घने जंगलो मे जाना मुश्किल हो जायेगा। सडक मार्ग से घने जंगलो को निहारा तो जा सकेगा पर अन्दर घुस पाना सम्भव नही होगा। जंगलो का चप्पा-चप्पा जानने वाले भी इस मौसम मे जंगल से दूर रहते है। पता नही कहाँ पानी भरा हो या कहाँ दलदल हो। सारी जडी-बूटियाँ उन भागो से एकत्र कर ली जाती है जो ऊपरी भाग मे है। बरसात मे नाना प्रकार के विषैले जीव निकल आते है। साँपो का भय सबसे अधिक होता है। मै हर बार दूर से घने जंगओ को निहारकर मन मसोस कर रह जाता हूँ। कई बार जाँबाज पारम्परिक चिकित्सको ने मेरे मन से साँप का डर दूर करने के लिये बहुत से उपाय किये पर कुछ उपायो को मैने अपनाया और शेष को अपनाने की हिम्मत ही नही हुयी। दो तरह के साँप स्थानीय तौर पर पिटपिटी और डोन्ह्रिया के नाम से जाने जाते है। ये साँप अक्सर नही काटते है। मनुष्य़ को देखते ही राह बदल देते है। पिटपिटी को तो गाँव के बच्चे उठा-उठाकर फेकते रहते है। यह उनका ग्रामीण खिलौना है। मै बचपन से यह सुन रहा हूँ कि इन

आप भी मिले मेरे मधुका मित्र से जिन्होने असंख्य लोगो को नया जीवन दिया है

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मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-53 - पंकज अवधिया आप भी मिले मेरे मधुका मित्र से जिन्होने असंख्य लोगो को नया जीवन दिया है इंटरनेट पर सोशल नेटवर्किग साइटो मे मेरे इन असंख्य मित्रो के नाम नही मिलते है पर फिर भी मै उनसे जुडा हुआ हूँ। इनकी संख्या करोडो मे है पर मै अभी तक कुछ लाख मित्रो से अच्छे से मिल पाया हूँ। इन मित्रो के विषय़ मे मैने विस्तार से जानकारियाँ एकत्र की है। आशा है ये जानकारियाँ एक दिन आन-लाइन होंगी और मेरे ये मित्र आप सबके मित्र बन सकेंगे। आज एक ऐसे बुजुर्ग मित्र से मै आपको मिलवा रहा हूँ जो उडीसा मे आसन जमाये हुये है। इन वृक्ष मित्र को मै प्रेम से मधुका कहता हूँ। मेरे असंख्य मधुका मित्र है पर इनकी बात ही निराली है। आप के सामने सीजीबीडी डेटाबेस मे अंकित जानकारियाँ यहाँ संक्षेप मे प्रस्तुत है: वृक्ष कहाँ पर है: उडीसा के पर्यटन स्थल नर्सिंगनाथ जाने के रास्ते मे बायी ओर। यह रास्ता नुआपाडा से नरसिंगनाथ की ओर जाता है। वृक्ष का हिन्दी नाम: महुआ वृक्ष का अंग्रेजी नाम: मधुका इंडिका वृक्ष की आयु : सौ साल से अधिक वृक्ष का सीजीबीडी डेटाबेस मे क्रमाँक: 85444 वृक्ष के आस-पास क्या जंगल है

कोई तो बचाये मुझे कर्क राशि मे होने वाले इस सूर्य ग्रहण से?

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-52 - पंकज अवधिया कोई तो बचाये मुझे कर्क राशि मे होने वाले इस सूर्य ग्रहण से? 22 जुलाई ,2009 का दिन मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन सूर्य ग्रहण है। सुबह चार बजे से रात बारह बजे तक का व्यस्त कार्यक्रम है पर मेरी राशि और ज्योतिष रोडे अटका रहे है। यदि ज्योतिषीयो की माने तो मेरा जन्म कर्क राशि मे पुष्य़ नक्षत्र मे हुआ है और सूर्य ग्रहण भ्री कर्क राशि मे पुष्य़ नक्षत्र मे है। सारी दुनिया कर्क राशि वालो के लिये संकट खडा किये हुये है। घर से निकलने से मना किया जा रहा है। दुर्घटनाओ की आशंका है। मै बडे ही असम्नजस मे हूँ। 22 जुलाई को पहला निमंत्रण काली बाबा की तरफ से है। इस बाबा ने सुबह तीन बजे जंगल मे बुलाया है। तंत्र-मत्र दिखाने और सीखाने के लिये नही बल्कि जडी-बूटी के एकत्रण के लिये। आम तौर पर सूर्य ग्रहण के दौरान जडी-बूटियाँ एकत्र नही की जाती है। पर तंत्र से जुडे लोग विशेष किस्म की जडी-बूटियाँ ग्रहण काल मे ही एकत्र करते है। वे चन्द्र और सूर्य ग्रहण की प्रतीक्षा करते रहते है। मुझे तंत्र मे कम विश्वास है पर मै उनके साथ जाकर जडी-बूटी एकत्रण की विधियाँ देखना चाहता हू

बीस हजार किस्मो की हर्बल टी वाला देश और जहरीली आम चाय पीते देशवासी

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-51 - पंकज अवधिया बीस हजार किस्मो की हर्बल टी वाला देश और जहरीली आम चाय पीते देशवासी पहाडी पर पारम्परिक चिकित्सक बहुत आगे निकल गये। मै तेजी से चढ नही पा रहा था। पीछे घने जंगल मे मुझे कुछ डर सा महसूस हो रहा था पर इतनी हिम्मत नही थी कि तेज कदमो से चलकर आगे जा रहे पारम्परिक चिकित्सको के साथ हो लूँ। एक वृक्ष की शाखा का सहारा लेना चाहा तो बहुत से ब्लिस्टर बीटल्स दिखायी दिये। ब्लिस्टर माने फफोले। जरा सा भी खतरा महसूस होने पर ये कीडे बिना देरी अपने शरीर से पिचकारी की तरह तरल छोडते है। जैसे ही यह तरल त्वचा के सम्पर्क मे आता है फफोले पड जाते है। बेहद दर्द होता है। ये कीडे दिखते सुन्दर है। मैने अपनी प्रयोगशाला मे इन्हे रखकर सालो तक शोध किया था पर प्रयोगशाला तो प्रयोगशाला होती है, प्रकृति मे उनकी शक्ति अलग ही होती है। इससे पहले कि वे मेरी ओर बढते मैने आगे बढने मे ही भलाई समझी। सीधी चढाई मे बडी तकलीफ होती है। विशेषकर जब जंगल मे बहुत नमी हो। अचानक आँखो के सामने अन्धेरा छाया और मै गिरने लगा। गिरते-गिरते मुझे लगा कि सामने दो लोग खडे है। मै कुछ समझता इससे पहले होश खो बै

हड्डी रोगो की चिकित्सा मे जुटा एक गाँव, खरदा कन्द और संवर्धित ज्ञान की महत्ता

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-50 - पंकज अवधिया हड्डी रोगो की चिकित्सा मे जुटा एक गाँव, खरदा कन्द और संवर्धित ज्ञान की महत्ता इस जंगल यात्रा के दौरान मै एक ऐसे गाँव पहुँचा जहाँ लगभग सभी घरो मे हड्डी रोगो की चिकित्सा होती थी। बडी संख्या मे रोगी यहाँ एकत्र थे। रोगियो लगातार यहाँ आते रहते है। सडक पर पडे गुटखे के पाउच और चिप्स के पैकेट इसके प्रमाण थे। आज से दस-बारह साल पहले जब मै उस गाँव मे आया था तब केवल एक ही पारम्परिक चिकित्सक रोगियो को देखते थे। मैने उनसे लम्बी बात की थी और फिर अपने बाटेनिकल डाट काम वाले शोध दस्तावेजो मे उनके बारे मे विस्तार से लिखा था। वे इतने सहज थे कि रोगियो को जडी-बूटी के बारे मे बता देते थे। पर फिर भी रोगी उनके हाथो से ही उन जडी-बूटियो को लेना पसन्द करते थे। इतने सालो के बाद एक बार फिर वहाँ जाकर मै रोमांचित था। अपना देश इतना बडा है कि एक ही स्थान मे दोबारा जाना कम ही हो पाता है। शायद इस जन्म मे देश के सभी कोनो तक जाकर पारम्परिक चिकित्सको से मिलना सम्भव ही नही हो पाये पर जितना सम्भव हो उतना तो किया ही जा सकता है। गाँव पहुँचने पर मैने उसी पारम्परिक चिकित्सक से मिलने क

तीन बून्दो से डायबीटीज का शर्तिया इलाज, जामुन की बाते और विष की सफाई

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-49 - पंकज अवधिया तीन बून्दो से डायबीटीज का शर्तिया इलाज, जामुन की बाते और विष की सफाई “तीन बून्द, केवल तीन बून्द से किसी भी प्रकार की डायबीटीज का जड से इलाज हो सकता है।“मेरे एक मित्र को जब मधुमेह पर लिखी जा रही लम्बी-चौडी रपट के विषय मे पता चला तो उन्होने एक विशेषज्ञ के बारे मे यह बताया। मैने पूछा कि क्या वे पारम्परिक चिकित्सक है या आधुनिक चिकित्सक? वे बोले कि पारम्परिक चिकित्सक के आस-पास है। पूरी तरह से पारम्परिक चिकित्सक नही है। यदि आप चाहो तो मै आपको उनके पास ले चलता हूँ। तीन बून्द मे डायबीटीज का जड से इलाज, ऐसा दावा करने वाले से मिलने मे भला क्या बुराई है? विशेषज्ञ मेरे शहर से सैकडो किलोमीटर की दूरी पर थे। सो, मुँह अन्धेरे ही हम उस ओर निकल पडे। काफी दूरी तय करने के बाद हम विशेषज्ञ के ठिकाने पर आ पहुँचे। हमने उन्हे आने के विषय मे बताया नही था। हम आम रोगी बनकर जाना चाहते थे। उनके घर के सामने कुछ रोगी बैठे हुये थे। वे सभी हमारी तरह दूर से आये थे। एक तैतीस वर्षीय रोगी ने बताया कि उसके पूरे परिवार को डायबीटीज है। वह एलोपैथी की दवाए तो खाता ही है साथ ही

लाखो की नाग मणियाँ, गोरोचन वाली गायो की हत्या और वशीकरण के दीवाने

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-48 - पंकज अवधिया लाखो की नाग मणियाँ, गोरोचन वाली गायो की हत्या और वशीकरण के दीवाने “मेरे पास दो नाग मणियाँ है। मैने इन्हे बीस लाख रुपये मे खरीदा है। क्या आप इसे एक करोड रुपयो मे बिकवा देंगे?” ये पंक्तियाँ है उन पत्रो मे से एक की जो मुझे अक्सर मिलते रहते है। ऐसे ई-मेल सन्देश भी मिलते रहते है। मै अक्सर इन्हे अनदेखा कर देता हूँ। पर इस बार हद हो गयी। एक व्यक्ति घर आ पहुँचा इन तथाकथित मणियो के साथ। पहले से मिलने का समय तय नही था इसलिये मैने इंकार कर दिया। वह सुबह से शाम तक घर के सामने बैठा रहा। शाम को मै क्लब जाने के लिये निकला तो उसे साथ मे बैठा लिया। गाडी चल पडी। मैने साफ शब्दो मे कह दिया कि मै इन पर विश्वास नही करता हूँ। आप मुझसे कोई उम्मीद नही रखे। उस व्यक्ति ने कहा कि आप एक बार मणियो को देख ले। बीस लाख की मणियो को देखने का लोभ मै भी नही छोड पाया। गाडी वापस मोडी और घर आ गया। उसने मणियाँ मेरे सामने रख दी और कहा कि आस-पास के सारे प्रवेश द्वार बन्द कर दो ताकि कोई सर्प न आ सके। व्यक्ति की बाते असाधारण थी पर मणि एकदम साधारण थी। मैने इसे पिताजी को दिखाने का मन बना

साँपो के आगे बेबस जडी-बूटियाँ और घायल साँप के आगे बेबस हम

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-47 - पंकज अवधिया साँपो के आगे बेबस जडी-बूटियाँ और घायल साँप के आगे बेबस हम “ये बीस जडी-बूटियाँ है। आप इन्हे घर ले जाइये और निश्चिंत हो जाइये। एक भी साँप नही आयेगा। आप पन्द्रह हजार रुपये दे दे। मै अभी इसे पालीथीन मे बाँध देता हूँ।“ उडीसा के एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल पर मै कल ही एक जडी-बूटी विक्रेता से चर्चा करने के लिये रुका था। बीस जडी-बूटियो के लिये पन्द्रह हजार कुछ ज्यादा नही है-मेरे प्रश्न पर विक्रेता थोडा नाराज हो गया और बोला कि आप तो किस्मत वाले हो जो इतने सस्ते यह मिल रही है। आप इतनी दूर से आये हो इसलिये सस्ता किया है। मैने कहा कि इतने सारे पैसे तो मेरे पास नही है। फिर उसने मोल-भाव शुरु कर दिया। इस बीच पास की बस्ती से कुछ शोर सुनायी दिया। धीरे-धीरे शोर हमारी ओर आने लगा। “साँप, साँप” की आवाज सुनकर हम चौकन्ने हो गये। देखा तो एक काला सा बडा साँप आया और जडी-बूटियो के बोरे के नीचे छुप गया। हम हडबडा गये। जब कुछ हल्ला शांत हुआ तो देखा कि विक्रेता दूर मे खडा है। जान मे जान आने के बाद याद आयी कि पन्द्रह हजार की बीस जडी-बूटियो के रहते भला कैसे साँप घुस गया? हम वि

रीठा की घटती संख्या, सरल प्रयोग और ग्रामीणो की शपथ

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-46 - पंकज अवधिया रीठा की घटती संख्या, सरल प्रयोग और ग्रामीणो की शपथ “हमारे यहाँ पीढीयो से मिठाई का कारोबार है। मिठाई वाले के घर मे रीठा का होना जरुरी है। बताशे तो रीठा के बिना बनाये ही नही जा सकते। यह मैल को साफ करता है। मैने यह धन्धा छोड दिया है। अब खेती पर ही पूरा ध्यान है। पहले रीठा के बहुत से वृक्ष जंगल और गाँव मे थे पर अब इसका उपयोग कम होने से केवल यही वृक्ष बचा है, वह भी आँधी-तूफान की मार से आधे से टूट गया है।“ एक ग्रामीण अधेड मुझे जंगली क्षेत्र का एकमात्र रीठा वृक्ष दिखाते हुये यह कह रहे थे। उन्हे भी आश्चर्य हो रहा था कि कहाँ शहरी बाबू इतनी दूर उनके घर मे आ गये, वह भी बिन बताये। मुझे रीठा की तस्वीरे लेती देख भीड एकत्र हो गयी। इस बीच रीठा के फल ले आये गये और जब तक मै अपना काम खत्म करता तब तक कई हाथ पानी मे रीठा को मलकर झाग बना चुके थे। वे चाहते थे कि मै झागयुक्त हाथो की तस्वीरे लूँ। मैने उन्हे निराश नही किया। भीड मे कुछ बच्चे भी थे जिन्हे रीठा के बारे मे ज्यादा कुछ मालूम नही था। वे बाल धोने के साबुन का प्रयोग करते थे पर यह उन्हे नही मालूम था कि उस सा

साँपो के डर के कारण विलुप्त होती गरुड जडी और इसे बचाने की मुहिम

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-45 - पंकज अवधिया साँपो के डर के कारण विलुप्त होती गरुड जडी और इसे बचाने की मुहिम यदि आपको पता चले कि पूरे जंगल से जो वनस्पति लुप्त हो चुकी है वह पास के गाँव के एक घर मे सुरक्षित है तो आप तुरंत ही उस ओर चल पडेंगे। मैने भी ऐसा ही किया। जिस वनस्पति के बारे मे ऐसा कहा जा रहा था वह आयुर्वेद के दृष्टिकोण से भी अति महत्वपूर्ण है। प्रसिद्ध दशमूल योग इस वनस्पति के बिना अधूरा है। यह वनस्पति है सोनपाठा। मेरे देखते ही देखते एक दशक के अन्दर इसकी संख्या मे अप्रत्याशित कमी आयी है। अभी भी बडी मात्रा मे इसकी जड का एकत्रण किया जाता है। आप समझ सकते है कि जड के एकत्रण के बाद वनस्पति की क्या हालत होती होगी?पारम्परिक चिकित्सक तो जड का थोडा सा भाग ही एकत्र करते है और फिर वनस्पति के कटे हुय्रे भाग मे जडी-बूटियो का घोल और मिट्टी लगा देते है ताकि इस चोट से वनस्पति जल्द से जल्द उबर जाये पर जब व्यापारियो के गुर्गे यह काम करते है तो उन्हे केवल जड और उसके माध्यम से आने वाला पैसा दिखता है। यदि उन्हे जड का शीर्ष चाहिये होगा तो भी वे पूरी जड उखाडेंगे और इस तरह उस वनस्पति का अस्तित्व सम