इमली मे काली साडी वाली चुडैल, जिद्दी बैगा और जनविश्वास

मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-31
- पंकज अवधिया

इमली मे काली साडी वाली चुडैल, जिद्दी बैगा और जनविश्वास


“रात के दो-सवा दो बजे थे। जगदलपुर से निकलते समय ही मुझे देर हो गयी थी। सडक पर कम गाडियाँ थी। काँकेर के पास ढाबे मे रुककर चाय पी और मुँह मे पानी के छींटे मारकर मै फिर गाडी चलाने लगा। काँकेर शहर पार करते ही कुछ दूरी पर मुझे एक साया हाथ दिखाते हुये दिखा। रात मे तो गाडी रोकने का तो सवाल ही नही है। मै चलता रहा। जब गाडी की लाइट उस साये पर पडी तो वह काली साडी पहने कोई महिला नही थी। अचानक मेरा पैर अपने आप ब्रेक पर चला गया और गाडी रुक गयी। मैने गाडी मोडी और वापस भागा। पीछे मुडकर देखने की हिम्मत नही हुयी। ढाबे पर मैने यह घटना बतायी तो लोग बोल पडे कि अच्छा किया लौट आये, वहाँ एक इमली का पुराना वृक्ष है। उसी मे चुडैल का निवास है। सुबह तक मै जागता रहा। फिर मंत्रो का जाप करते हुये दूसरी गाडियो के पीछे मैने अपनी गाडी निकाली। अब कोई कितने पैसे दे मै उस रास्ते से जाता ही नही हूँ।“ मेरे ड्रायवर का एक मित्र हमे यह रोमांचक किस्सा सुना रहा था। आज मुझे काँकेर की यात्रा करनी थी इसलिये सुबह-सुबह ही इस व्यक्ति को मेरे सामने प्रस्तुत कर दिया गया किस्से के साथ।

काँकेर से मै अनगिनत बार गुजरा हूँ। साथ ही उस क्षेत्र मे वानस्पतिक सर्वेक्षण करता ही रहता हूँ पर ऐसी कोई बात मैने नही सुनी थी। मैने अपने डेटाबेस से उस व्यक्ति को काँकेर क्षेत्र मे ली गयी इमली के वृक्ष की हजारो तस्वीरे दिखायी पर उसने दो टूक कह दिया कि यह जंगल के अन्दर की इमली नही है। मुख्यमार्ग मे यह इमली का वृक्ष है। मैने उस व्यक्ति को साथ रख लिया। हम काँकेर की ओर निकल पडे। रायपुर से 140 किमी की दूरी थी। रास्ते से एक बैगा को लेना था। जब हमने इस बैगा को गाडी मे बिठाया तो उससे इमली और चुडैल की चर्चा की। उसने हमे और डराने की बजाय इसे कपोल-कल्पित घटना बताया और बोला कि कहाँ आज के जमाने मे चुडैल की बात करते हो? सफेद साडी वाली चुडैल सुनी थी। काली साडी वाली चुडैल पहली बार सुन रहा हूँ। चलो, मुझे दिखाओ कहाँ पर है? मै रात भर उस वृक्ष के नीचे गुजारने को तैयार हूँ। बैगा की बात सुनकर मैने पक्ष और विपक्ष दोनो को भिडाने का मन बना लिया। उनसे कहा कि बडी शर्त लगाओ ताकि दोपहर के खाने का इंतजाम हो जाये। उस व्यक्ति का कहना था कि रात भर क्या एक पल भी उस वृक्ष के नीचे कोई खडा नही हो सकता। जबकि बैगा अपनी जिद पर अडा हुआ था।

काफी देर की यात्रा के बाद हमे एक मोड पर पहुँचे। उस व्यक्ति ने गाडी रुकवा दी। दूर मोड पर एक इमली का वृक्ष था। उस ओर इशारा करते हुये उसने कहा कि बस, मै तो यही रुकूंगा। आपको जाना हो तो जाये। हम उतर गये और पैदल ही उस ओर चल पडे। वृक्ष के समीप मुझे कुछ भी अजीब सा नही लगा। सुबह बारिश हुयी थी। वृक्ष के चारो ओर नमी थी। वृक्ष मे हरी-हरी नयी पत्तियाँ लगी थी। वृक्ष बहुत पुराना नही लगता था। लगता था कि उसकी कटाई-छटाई की गयी है। साथ आये बैगा ने भी वृक्ष का निरक्षण किया। वहाँ बहुत सी जल चुकी अगरबत्तियाँ थी और पूजा के निशान थे। बैगा ने उस व्यक्ति को आवाज दी और फिर शर्त के मुताबिक वही धूनी जमाकर बैठ गया। मैने उस वृक्ष की ढेरो तस्वीरे ली और फिर ड्रायवर को लेकर आस-पास के लोगो से मिलने चला गया।


(इमली की ओर बढता बैगा)

लोगो ने बताया कि सडक विभाग ने मोड पर हो रहे एक्सीडेंटो को ध्यान मे रखते हुये मोड पर खडे इस वृक्ष को कटवाने की बहुत कोशिश की पर यह सम्भव नही हो पाया। जिस किसी ने इसे काटने की हिम्मत की उसकी जान चली गयी। स्थानीय लोगो ने आगे बताया कि सडक मे बाधा बनने वाले सारे वृक्ष काट दिये गये पर यह वैसा का वैसा रहा। ध्यान से सडक मार्ग को देखने से सचमुच यही एक वृक्ष बाधा के रुप मे दिखता था। स्थानीय लोग इसकी पूजा करते है। चुडैल की बात पर सभी एक मत नही दिखे। ज्यादातर ने कहा कि रात को इस मार्ग से गुजरने वाले को परेशान नही किया जाता है। “क्या इस वृक्ष मे फल लगते है?” मैने पूछा तो सब ने कहा “हाँ”। कौन इन फलो को एकत्र करता है? उनका जवाब था कि कोई भी एकत्र कर सकता है। इसका मतलब यह था कि इमली एकत्र करते समय किसी को डर नही लगता था। वे बेधडक वृक्ष के पास चले जाते थे। स्थानीय लोगो से दूसरे विषयो पर भी बातचीत हुयी। मानसून मे हो रही देरी का मुद्दा हावी रहा।

आस-पास की तस्वीरे लेने के बाद जब हम लौटे तो बैगा वृक्ष के नीचे जमा हुआ था। उस व्यक्ति ने हार मान ली थी पर उसने यह नही माना था कि यहाँ चुडैल जैसी कोई चीज नही है बल्कि उसने बैगा को शक्तिशाली मान लिया था। बैगा ने शर्त जीत ली थी। उसने इमली की छाल एकत्र की और अपने पास रख ली। हम आगे चल पडे। ढाबे पर हमने भरपेट खाना खाया।

आगे के रास्ते मे मै इमली के बारे मे सोचता रहा। मुझे यह साफ अन्ध-विश्वास लगा पर यह भी मन मे आया कि इसे जारी रहने देना भी ठीक ही है। इसने इस वृक्ष को बचा के रखा है। विकास के नाम पर असंख्य नये-पुराने वृक्ष काट दिये गये। उनके साथ किसी चुडैल की बाते नही जुडी हुयी थी। आज यात्रा मे निकलते समय मैने राजधानी के प्रसिद्ध शीतला मन्दिर के ऊपर के पीपल को छँटते देखा था। इस वृक्ष ने इस देव स्थान को अपने साये मे पीढीयो तक रखा पर आज उसे बिना बताये उस पर आरियाँ चलायी जा रही थी। आम लोग देख रहे थे पर कोई भी उसकी जान बचाने सामने नही आ रहा था। दूसरी ओर इमली का वह वृक्ष है जिसके बारे मे डरावनी बाते ही इतनी फैल चुकी है कि आम लोग न भी आये तो कोई उसका बाल भी बाँका नही कर सकता है।

(शीतला मन्दिर के पीपल की छँटाई)

रास्ते के दोनो ओर खडे वृक्षो की तस्वीरे लेने का मन आजकल नही करता है क्योकि मुझे इस बात का अहसास है कि ये वृक्ष विकास की बलिवेदी कभी भी चढ सकते है। पता नही क्यो इमली के उस वृक्ष की तस्वीर लेते समय यह बात मेरे मन मे क्यो नही आयी। (क्रमश:)

(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)

© सर्वाधिकार सुरक्षित

Comments

पेड़ों को बचाने लगें तो भूत, प्रेत और चुडैलें बर्दाश्त हैं।
कई प्रकार के अंधविश्‍वास आज भी समाज का भला ही कर रहे हैं .. लोगों को समझने की जरूरत है इसे .. अपने अनुभवों पर अच्‍छा आलेख लिखते हैं आप !!

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