कोई तो बचाये मुझे कर्क राशि मे होने वाले इस सूर्य ग्रहण से?
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-52
- पंकज अवधिया
कोई तो बचाये मुझे कर्क राशि मे होने वाले इस सूर्य ग्रहण से?
22 जुलाई ,2009 का दिन मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन सूर्य ग्रहण है। सुबह चार बजे से रात बारह बजे तक का व्यस्त कार्यक्रम है पर मेरी राशि और ज्योतिष रोडे अटका रहे है। यदि ज्योतिषीयो की माने तो मेरा जन्म कर्क राशि मे पुष्य़ नक्षत्र मे हुआ है और सूर्य ग्रहण भ्री कर्क राशि मे पुष्य़ नक्षत्र मे है। सारी दुनिया कर्क राशि वालो के लिये संकट खडा किये हुये है। घर से निकलने से मना किया जा रहा है। दुर्घटनाओ की आशंका है। मै बडे ही असम्नजस मे हूँ।
22 जुलाई को पहला निमंत्रण काली बाबा की तरफ से है। इस बाबा ने सुबह तीन बजे जंगल मे बुलाया है। तंत्र-मत्र दिखाने और सीखाने के लिये नही बल्कि जडी-बूटी के एकत्रण के लिये। आम तौर पर सूर्य ग्रहण के दौरान जडी-बूटियाँ एकत्र नही की जाती है। पर तंत्र से जुडे लोग विशेष किस्म की जडी-बूटियाँ ग्रहण काल मे ही एकत्र करते है। वे चन्द्र और सूर्य ग्रहण की प्रतीक्षा करते रहते है। मुझे तंत्र मे कम विश्वास है पर मै उनके साथ जाकर जडी-बूटी एकत्रण की विधियाँ देखना चाहता हूँ। उनकी शर्ते बडी कठिन है। हमे नंगे पाँव जंगल मे जाना होगा। जब ग्रहण के दौरान अन्धेरा हो जायेगा तो रोशनी नही करनी है। जहाँ खडे है वही खडे रहना होगा। योजना है कि उस स्थिति से पहले ही जडी-बूटियो तक पहुँच जाया जाये। काली बाबा अपने चेले चपाटो के साथ होंगे। उनके साथ शहरी धनाढयो की बडी संख्या होने की उम्मीद है। तंत्र की सबसे अधिक आवश्यकता उन्हे कुछ ज्यादा ही होती है। काली बाबा का कहना है कि लकडी के औजारो से दीमक की बाम्बी खोदी जायेगी और फिर हत्थाजोडी की तलाश की जायेगी। सुबह का समय जंगली जानवरो के लिये वापस लौटने का समय होता है। इतनी भीड मे उनके पास आने की उम्मीद कम ही है। पर मुझे लगता है कि मै ग्रहण के प्रति उनके व्यवहार को करीब से देख सकूंगा।
मैने रात को पास के एक शहर मे रुकने की योजना बनायी है ताकि तीन बजे तक काली बाबा के डेरे पर पहुँच सकूँ। जाहिर है इस जंगल यात्रा के दौरान मेरे मन मे ढेरो प्रश्न रहेंगे पर काली बाबा के सामने प्रश्न पूछने की मनाही है। इस बात की पूरी सम्भावना है कि उन्हे सवाल के जवाब नही मालूम हो इसलिये सवाल पूछने पर ही पाबन्दी लगा दी गयी है। नेरे साथ फिल्म बनाने वाले होंगे जबकि मै भी कैमरे से लैस रहूंगा।
ऐसा नही है कि ग्रहण के दौरान मै पहले घर से बाहर नही रहा हूँ। मैने बहुत बार पारम्परिक चिकित्सको के साथ ग्रहण के दौरान जंगल की यात्रा की है। वे जंगल कुछ लेने नही बल्कि देने जाते है। वे जडी-बूटियो का घोल बनाते है और फिर उस घोल को बडे वृक्षो की जडो मे डाल आते है। ऐसा वे पीढीयो से कर रहे है। वे इस बारे मे ज्यादा बताते नही है पर यह अवश्य कहते है कि यह प्रक्रिया उपयोगी वनस्पतियो को ग्रहण के कुप्रभाव से बचाने के लिये ही है।
ग्रहण के समय मे बहुत बार स्थानीय अन्ध-श्रद्धा निर्मूलन समिति के साथ आम लोगो को यह दिखाने के लिये बाहर बैठा हूँ कि इससे कोई नुकसान नही होता है। पर इस बार ज्योतिषीयो के अनुसार स्थिति सबसे खराब है। बहुत बडा अनर्थ होने वाला है। इसलिये पारिवारिक ज्योतिषी ने पहले ही चेतावनी दे दी है। चेतावनी तो सभी दे रहे है। एक अखबार कहता है कि कर्क राशि वालो को लगभग चारो ओर से संकट आयेंगे। मै इस वाक्य मे “लगभग चारो ओर” से डरा हुआ हूँ। चारो ओर लिखा होता तो कोई बात नही थी पर यह लगभग चारो ओर ने मुझे भयग्रस्त कर दिया है। सभी अखबार अलग-अलग मंत्र पढने की सलाह दे रहे है ग्रहण के दौरान। यह भी कह रहे है कि केवल यही मंत्र पढना है। दूसरे सभी मंत्र को भूल कर भी नही जपना है। मेरे पास बीस से अधिक मंत्र एकत्र हो गये है। इक्कीसवाँ मंत्र लेकर पारिवारिक ज्योतिषी अभी आते ही होंगे।
काली बाबा से निपटने के बाद एक सर्प विशेषज्ञ के पास जाना है। वे अपने चेलो को हरेली अमावस्या के दिन दीक्षा देते है। 22 जुलाई को ही हरेली अमावस्या भी है। हमे श्री गणेश नामक सर्प विशेषज्ञ के घर किये गये पिछले साल के प्रयोगो को दोहराना है। एक बार फिर विषयुक्त सर्पो के बीच नंगे बदन लेटना है और अपनी गुरु भक्ति का परिचय देना है। इस सब को सुनकर पारिवारिक ज्योतिष कहते है कि पिछली बार तो बच गये थे इस बार तो सब के सब सर्प डस लेंगे। सूर्य ग्रहण जो है मेरी राशि पर। वे जब सुनते है कि इसके बाद चावल के साथ सर्प विष का प्रसाद ग्रहण करने की योजना है तो उनसे रुका नही जाता है। वे पिताजी को आँखे फैलाकर डराते है और घोर अनर्थ की बात करते है।
इस सर्प विशेषज्ञ से मिलने के बाद उन कन्द मूलो को एकत्र करने जाना है जिन्हे हरेली अमावस्या के दिन चरवाहे पशुओ को खिलाते है। इससे पशु साल भर रोगो से बचे रहते है। देश के अलग-अलग हिस्सो मे अलग-अलग किस्म के कन्द खिलाये जाते है। बहुत से भागो मे तो इस दिन ग्रामीण भी कन्द मूलो का सेवन करते है। इन कन्दो को खोजने जंगल मे जाना होता है। पातालकुम्हडा जैसे कन्दो के लिये घंटे भर तक मेहनत करनी पडती है। आप एक किनारे पर खडे रहकर फोटोग्राफी नही कर सकते है। आपको स्वयम भी हाथ लगाना होगा। यदि गाँव मे नाना प्रकार के रोगी होंगे तो अलग-अलग प्रकार के कन्द लाने होंगे। यह मान्यता है कि आप जितने अधिक लोगो को कन्द-मूल देंगे उतना ही अधिक पुण्य आपको मिलेगा। मै यह अवसर खोना नही चाहता हूँ।
शाम होते-होते भी आराम का मौका नही मिलेगा। दर्जनो फोन आयेंगे कि आप हमारे गाँव आये रात को, आज तंत्र साधक और साधिकाए दिखेंगी। दूर से जलती हुयी आग दिखेगी जो ऐसे कुलाँचे मारेगी कि आप के होश उड जायेंगे। जाने कितने सालो से ऐसे फोन कालो के आधार पर मै उन गाँवो की यात्रा कर रहा हूँ और लोगो को बता रहा हूँ कि इस अन्ध-विश्वास से बाहर निकले। हमे एक बार भी आग का गोला नही दिखा। न साधक दिखे और न साधिकाए।
“कर्क राशि वाले वैसे ही साढे साती का दंश झेल रहे है। ऊपर से सूर्य ग्रहण। पंकज जी को कुछ हो गया तो मेरी जिम्मेदारी नही है।“पारिवारिक ज्योतिषी कुद्ध होकर फोन कर रहे है। परिवारजन कहते है कि वे मेरे शुभ-चिंतक है। वरना भला कौन फोन पर फोन करके चेतावनियाँ देता है? आजकल तो दक्षिणा पर ही सारा ज्योतिष टिका होता है। इस तरह की बाते मन को व्यथित कर देती है। 22 जुलाई, 2009 मेरे इस जीवन मे दोबारा नही आने वाला न ही ऐसी अनोखी खगोलीय घटना इस जन्म मे दोबारा घटने वाली है। मै अपनी योजना पर अडिग रहना चाहता हूँ। मै तो जंगल जाऊँगा। मैने पारिवारिक ज्योतिषी को दो टूक कह दिया है। वे नाराज हो गये लगते है पर मुझे उम्मीद है कि इस शुभ-चिंतक को साथ चलने के लिये जल्दी ही मना लूंगा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
- पंकज अवधिया
कोई तो बचाये मुझे कर्क राशि मे होने वाले इस सूर्य ग्रहण से?
22 जुलाई ,2009 का दिन मेरे लिये बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन सूर्य ग्रहण है। सुबह चार बजे से रात बारह बजे तक का व्यस्त कार्यक्रम है पर मेरी राशि और ज्योतिष रोडे अटका रहे है। यदि ज्योतिषीयो की माने तो मेरा जन्म कर्क राशि मे पुष्य़ नक्षत्र मे हुआ है और सूर्य ग्रहण भ्री कर्क राशि मे पुष्य़ नक्षत्र मे है। सारी दुनिया कर्क राशि वालो के लिये संकट खडा किये हुये है। घर से निकलने से मना किया जा रहा है। दुर्घटनाओ की आशंका है। मै बडे ही असम्नजस मे हूँ।
22 जुलाई को पहला निमंत्रण काली बाबा की तरफ से है। इस बाबा ने सुबह तीन बजे जंगल मे बुलाया है। तंत्र-मत्र दिखाने और सीखाने के लिये नही बल्कि जडी-बूटी के एकत्रण के लिये। आम तौर पर सूर्य ग्रहण के दौरान जडी-बूटियाँ एकत्र नही की जाती है। पर तंत्र से जुडे लोग विशेष किस्म की जडी-बूटियाँ ग्रहण काल मे ही एकत्र करते है। वे चन्द्र और सूर्य ग्रहण की प्रतीक्षा करते रहते है। मुझे तंत्र मे कम विश्वास है पर मै उनके साथ जाकर जडी-बूटी एकत्रण की विधियाँ देखना चाहता हूँ। उनकी शर्ते बडी कठिन है। हमे नंगे पाँव जंगल मे जाना होगा। जब ग्रहण के दौरान अन्धेरा हो जायेगा तो रोशनी नही करनी है। जहाँ खडे है वही खडे रहना होगा। योजना है कि उस स्थिति से पहले ही जडी-बूटियो तक पहुँच जाया जाये। काली बाबा अपने चेले चपाटो के साथ होंगे। उनके साथ शहरी धनाढयो की बडी संख्या होने की उम्मीद है। तंत्र की सबसे अधिक आवश्यकता उन्हे कुछ ज्यादा ही होती है। काली बाबा का कहना है कि लकडी के औजारो से दीमक की बाम्बी खोदी जायेगी और फिर हत्थाजोडी की तलाश की जायेगी। सुबह का समय जंगली जानवरो के लिये वापस लौटने का समय होता है। इतनी भीड मे उनके पास आने की उम्मीद कम ही है। पर मुझे लगता है कि मै ग्रहण के प्रति उनके व्यवहार को करीब से देख सकूंगा।
मैने रात को पास के एक शहर मे रुकने की योजना बनायी है ताकि तीन बजे तक काली बाबा के डेरे पर पहुँच सकूँ। जाहिर है इस जंगल यात्रा के दौरान मेरे मन मे ढेरो प्रश्न रहेंगे पर काली बाबा के सामने प्रश्न पूछने की मनाही है। इस बात की पूरी सम्भावना है कि उन्हे सवाल के जवाब नही मालूम हो इसलिये सवाल पूछने पर ही पाबन्दी लगा दी गयी है। नेरे साथ फिल्म बनाने वाले होंगे जबकि मै भी कैमरे से लैस रहूंगा।
ऐसा नही है कि ग्रहण के दौरान मै पहले घर से बाहर नही रहा हूँ। मैने बहुत बार पारम्परिक चिकित्सको के साथ ग्रहण के दौरान जंगल की यात्रा की है। वे जंगल कुछ लेने नही बल्कि देने जाते है। वे जडी-बूटियो का घोल बनाते है और फिर उस घोल को बडे वृक्षो की जडो मे डाल आते है। ऐसा वे पीढीयो से कर रहे है। वे इस बारे मे ज्यादा बताते नही है पर यह अवश्य कहते है कि यह प्रक्रिया उपयोगी वनस्पतियो को ग्रहण के कुप्रभाव से बचाने के लिये ही है।
ग्रहण के समय मे बहुत बार स्थानीय अन्ध-श्रद्धा निर्मूलन समिति के साथ आम लोगो को यह दिखाने के लिये बाहर बैठा हूँ कि इससे कोई नुकसान नही होता है। पर इस बार ज्योतिषीयो के अनुसार स्थिति सबसे खराब है। बहुत बडा अनर्थ होने वाला है। इसलिये पारिवारिक ज्योतिषी ने पहले ही चेतावनी दे दी है। चेतावनी तो सभी दे रहे है। एक अखबार कहता है कि कर्क राशि वालो को लगभग चारो ओर से संकट आयेंगे। मै इस वाक्य मे “लगभग चारो ओर” से डरा हुआ हूँ। चारो ओर लिखा होता तो कोई बात नही थी पर यह लगभग चारो ओर ने मुझे भयग्रस्त कर दिया है। सभी अखबार अलग-अलग मंत्र पढने की सलाह दे रहे है ग्रहण के दौरान। यह भी कह रहे है कि केवल यही मंत्र पढना है। दूसरे सभी मंत्र को भूल कर भी नही जपना है। मेरे पास बीस से अधिक मंत्र एकत्र हो गये है। इक्कीसवाँ मंत्र लेकर पारिवारिक ज्योतिषी अभी आते ही होंगे।
काली बाबा से निपटने के बाद एक सर्प विशेषज्ञ के पास जाना है। वे अपने चेलो को हरेली अमावस्या के दिन दीक्षा देते है। 22 जुलाई को ही हरेली अमावस्या भी है। हमे श्री गणेश नामक सर्प विशेषज्ञ के घर किये गये पिछले साल के प्रयोगो को दोहराना है। एक बार फिर विषयुक्त सर्पो के बीच नंगे बदन लेटना है और अपनी गुरु भक्ति का परिचय देना है। इस सब को सुनकर पारिवारिक ज्योतिष कहते है कि पिछली बार तो बच गये थे इस बार तो सब के सब सर्प डस लेंगे। सूर्य ग्रहण जो है मेरी राशि पर। वे जब सुनते है कि इसके बाद चावल के साथ सर्प विष का प्रसाद ग्रहण करने की योजना है तो उनसे रुका नही जाता है। वे पिताजी को आँखे फैलाकर डराते है और घोर अनर्थ की बात करते है।
इस सर्प विशेषज्ञ से मिलने के बाद उन कन्द मूलो को एकत्र करने जाना है जिन्हे हरेली अमावस्या के दिन चरवाहे पशुओ को खिलाते है। इससे पशु साल भर रोगो से बचे रहते है। देश के अलग-अलग हिस्सो मे अलग-अलग किस्म के कन्द खिलाये जाते है। बहुत से भागो मे तो इस दिन ग्रामीण भी कन्द मूलो का सेवन करते है। इन कन्दो को खोजने जंगल मे जाना होता है। पातालकुम्हडा जैसे कन्दो के लिये घंटे भर तक मेहनत करनी पडती है। आप एक किनारे पर खडे रहकर फोटोग्राफी नही कर सकते है। आपको स्वयम भी हाथ लगाना होगा। यदि गाँव मे नाना प्रकार के रोगी होंगे तो अलग-अलग प्रकार के कन्द लाने होंगे। यह मान्यता है कि आप जितने अधिक लोगो को कन्द-मूल देंगे उतना ही अधिक पुण्य आपको मिलेगा। मै यह अवसर खोना नही चाहता हूँ।
शाम होते-होते भी आराम का मौका नही मिलेगा। दर्जनो फोन आयेंगे कि आप हमारे गाँव आये रात को, आज तंत्र साधक और साधिकाए दिखेंगी। दूर से जलती हुयी आग दिखेगी जो ऐसे कुलाँचे मारेगी कि आप के होश उड जायेंगे। जाने कितने सालो से ऐसे फोन कालो के आधार पर मै उन गाँवो की यात्रा कर रहा हूँ और लोगो को बता रहा हूँ कि इस अन्ध-विश्वास से बाहर निकले। हमे एक बार भी आग का गोला नही दिखा। न साधक दिखे और न साधिकाए।
“कर्क राशि वाले वैसे ही साढे साती का दंश झेल रहे है। ऊपर से सूर्य ग्रहण। पंकज जी को कुछ हो गया तो मेरी जिम्मेदारी नही है।“पारिवारिक ज्योतिषी कुद्ध होकर फोन कर रहे है। परिवारजन कहते है कि वे मेरे शुभ-चिंतक है। वरना भला कौन फोन पर फोन करके चेतावनियाँ देता है? आजकल तो दक्षिणा पर ही सारा ज्योतिष टिका होता है। इस तरह की बाते मन को व्यथित कर देती है। 22 जुलाई, 2009 मेरे इस जीवन मे दोबारा नही आने वाला न ही ऐसी अनोखी खगोलीय घटना इस जन्म मे दोबारा घटने वाली है। मै अपनी योजना पर अडिग रहना चाहता हूँ। मै तो जंगल जाऊँगा। मैने पारिवारिक ज्योतिषी को दो टूक कह दिया है। वे नाराज हो गये लगते है पर मुझे उम्मीद है कि इस शुभ-चिंतक को साथ चलने के लिये जल्दी ही मना लूंगा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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आपकी यात्रा वर्णन का इन्तजार रहेगा | शुभकामनाएँ |