तीन बून्दो से डायबीटीज का शर्तिया इलाज, जामुन की बाते और विष की सफाई
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-49
- पंकज अवधिया
तीन बून्दो से डायबीटीज का शर्तिया इलाज, जामुन की बाते और विष की सफाई
“तीन बून्द, केवल तीन बून्द से किसी भी प्रकार की डायबीटीज का जड से इलाज हो सकता है।“मेरे एक मित्र को जब मधुमेह पर लिखी जा रही लम्बी-चौडी रपट के विषय मे पता चला तो उन्होने एक विशेषज्ञ के बारे मे यह बताया। मैने पूछा कि क्या वे पारम्परिक चिकित्सक है या आधुनिक चिकित्सक? वे बोले कि पारम्परिक चिकित्सक के आस-पास है। पूरी तरह से पारम्परिक चिकित्सक नही है। यदि आप चाहो तो मै आपको उनके पास ले चलता हूँ। तीन बून्द मे डायबीटीज का जड से इलाज, ऐसा दावा करने वाले से मिलने मे भला क्या बुराई है? विशेषज्ञ मेरे शहर से सैकडो किलोमीटर की दूरी पर थे। सो, मुँह अन्धेरे ही हम उस ओर निकल पडे।
काफी दूरी तय करने के बाद हम विशेषज्ञ के ठिकाने पर आ पहुँचे। हमने उन्हे आने के विषय मे बताया नही था। हम आम रोगी बनकर जाना चाहते थे। उनके घर के सामने कुछ रोगी बैठे हुये थे। वे सभी हमारी तरह दूर से आये थे। एक तैतीस वर्षीय रोगी ने बताया कि उसके पूरे परिवार को डायबीटीज है। वह एलोपैथी की दवाए तो खाता ही है साथ ही हर उस व्यक्ति की सलाह मानता है जो जडी-बूटी के बारे मे बताता है। उसने तीन महिने तक बेल की पत्तियो के रस का सेवन किया था। फिर बोगनवीलीया की पत्तियो का रस भी पी गया था। गेहूँ का रस पी रहा था और साथ ही नोनी जैसे उत्पाद पर भी पैसे बहा रहा था। हम उसकी प्रयोगधर्मिता पर भौचक्क थे। हमे उसके पैंक्रियाज पर भी दया आ रही थी। पता नही कैसे-कैसे दिन उसे और देखने होंगे?
वह युवक हमसे बाते करते वक्त बार-बार छोटी सी मशीन को शरीर मे चुभोने को आतुर दिखता था। मुझे तो वह मधुमेह से ज्यादा “मधुमेह के भय” का मारा दिखा। यह भय खतरनाक है। यदि रोगी पढा-लिखा हो तो यह भय मधुमेह से ज्यादा उस पर हावी हो जाता है। शरीर बेवजह ही बोझ महसूस करने लगता है। पता नही बेल की पत्तियो के रस ने उसके शरीर का क्या हाल किया होगा?
बहरहाल, विशेषज्ञ को अपने दवाखाने मे आने मे समय था तो हम गाँव भ्रमण के लिये निकल पडे। इस बार मानसून मे देरी के कारण जामुन अभी तक नही शहरो मे नही आया है। गाँव मे जामुन से वृक्ष लदे हुये थे। फलो को तोडकर शहर ले जाने की तैयारियाँ हो रही थी। ग्रामीणो ने बताया कि शहर मे जामुन हाथो=हाथ बिक जाता है। शहर रोगो का घर है और यह फल रोगो को दूर रखता है। मधुमेह मे इसकी विशेष भूमिका है। मधुमेह के रोगी तो इस पर टूट पडते है। पेट भरने के बाद भी इसे खाते रहते है इस तर्ज पर कि मानो आज ही उन्हे मधुमेह से छुटकारा मिल जायेगा। फिर वे गुठलियो को रख लेते है। साल भर गुठलियो का चूर्ण के रुप मे सेवन करते रहते है। बिना किसी से पूछे और बिना किसी को बताये। इस पर मधुमेह की चिकित्सा मे पारंगत पारम्परिक चिकित्सक खूब हँसते है। वे कहते है कि “जामुन खाने की कला” के बारे मे लोग नही जानते है। जामुन कब खाना, कब नही खाना, जामुन खाने के बाद क्या पीना और क्या नही पीना, भोजन मे किस तरह का परहेज करना आदि-आदि जाने और समझे बिना शहरी रोगी बस खाने के लिये टूट पडते है। जामुन की गुठली यदि ठीक से नही चुनी गयी हो तो पेट और किडनी की कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती है। जामुन प्राकृतिक है, इसके ये तो मायने बिल्कुल नही है कि इससे केवल लाभ ही होगा। यह औषधी है तो इसे खाने की विधि होगी। उम्र के अनुसार अलग-अलग मात्रा होगी।
सबसे पहले तो जामुन स्वाद लेकर आराम से खाना चाहिये। हडबडी मे ज्यादा जामुन खाने की बजाय आराम से खाये गये जामुन ज्यादा लाभदायक है। जामुन पके होने चाहिये न कि बाजार की माँग के अनुसार शाखाओ से गिराये गये अधपके जामुन। शहरो मे तो जामुन पर मख्खियाँ भिनभिनाती रहती है। जब ठेले वालो को डाँटो तो वे कहते है कि जामुन को ढककर रखेंगे तो लोग कैसे जान पायेंगे कि हम जामुन बेच रहे है। मुझे अपनी रपट याद आती है जिसमे मैने जामुन के उन पक्षो के बारे मे विस्तार से लिखा है जिनके बारे मे प्राचीन चिकित्सा विशेषज्ञ शायद लिखना भूल गये थे।
गाँव के भ्रमण के बाद हम वापस लौटे तो विशेषज्ञ आ चुके थे। वह तैतीस वर्षीय युवक दवा लेकर बाहर निकल रहा था। उसके पास दसो किस्म की दवाए थी। कुछ तो टीवी वाले बाबाओ के उत्पाद थे। मुझे तो तीन बून्द से इलाज की बात बतायी गयी थी। मित्र ने शांत रहने को कहा और हम विशेषज्ञ के सामने पहुँच गये। उन्होने थोडी बहुत जानकारी ली और फिर मुझे मधुमेह का रोगी घोषित कर दिया। नाडी देखकर बोले कि आपने खूब अंग्रेजी दवाए ली है। जबकि मै न तो मधुमेह का रोगी हूँ और न ही कोई दवा ली है। वे लम्बी-चौडी दवाओ की सूची लिखने मे व्यस्त हो गये। मुझसे रहा नही गया। मैने तीन बून्दो वाले इलाज की चर्चा छेड दी। वे बोले कि तीन बून्दो वाली दवा की कीमत हजारो मे है। मै पैसे देने के लिये तैयार हो गया पर पहले पूछा कि क्या इस बात की गारंटी है कि रोग पूरी तरह ठीक हो जायेगा और आजीवन किसी दवा की जरुरत नही होगी? मैने उनसे यह भी कहा कि यदि आप गारंटी दे तो मै आपकी सिफारिश सरकार से कर सकता हूँ। आप निश्चित ही पुरुस्कार और सम्मान के हकदार होंगे। इस पर वे बगले झाँकने लगे। बोले कि गारंटी नही है। मैने कहा कि क्या आप उन रोगियो की सूची दे सकते है जिन्हे लाभ हुआ है। उनका जवाब स्पष्ट नही था। वे मुझे टालने की कोशिश करने लगे।
अगले रोगी को वे आवाज देते इससे पहले मित्र ने राज खोला और मेरा परिचय दिया कि ये वैज्ञानिक है और मधुमेह से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान की रपट बना रहे है। इन्होने करोडो पन्ने मधुमेह पर लिखे है और अभी भी लिख रहे है। विशेषज्ञ ने परिचय सुन हाथ खडे करना ही ठीक समझा।
मैने अपनी रपट मे हजारो पारम्परिक चिकित्सको से मुलाकात से प्राप्त अनुभव को शामिल किया है। मुझे एक भी ऐसा पारम्परिक चिकित्सक नही मिला जिसने कुछ दिनो या चन्द दवाओ से इस मर्ज को ठीक करने का दावा किया हो। ज्यादातर ने तो साफ शब्दो मे कहा कि यदि कोई ऐसा दावा करे तो वह महज लफ्फाजी होगी। मेरी रपट मे वनौषधीयो का वर्णन तो है ही पर साथ मे सही वनौषधीयो के चुनाव पर काफी विस्तार से लिखा गया है। वनौषधीयो के प्रयोग के साथ कैसा भोजन लेना है, यह भी महत्वपूर्ण है। आज का शहरी मधुमेह रोगी मनचाहा भोजन करता है। अंग्रेजी दवाए तो लेता ही है पर साथ ही अपने अधकचरे ज्ञान से जडी-बूटियाँ भी लेता रहता है। यह मधुमेह से लडने की शरीर की क्षमता को कम कर देता है। शरीर रसायनो के सामने धराशायी हो जाता है। रोग से लडने की उसकी इच्छाशक्ति एक तरह से मर जाती है। वह रसायनो पर आश्रित हो जाता है। शरीर की एक बार ऐसी दशा हो गयी तो इससे बाहर निकलना बडा ही मुश्किल होता है। मधुमेह का पता लगते ही दवाओ का आश्रय लेने की बजाय शरीर को स्वस्थ्य बनाने की ओर ध्यान देना चाहिये। ऐसा करने से कुछ समय मे ही मधुमेह से लडने के लिये शरीर तैयार हो जाता है। फिर विशेषज्ञो की राय लेकर ही वनौषधीयो का सेवन करना चाहिये। सही विशेषज्ञो की सलाह लेनी चाहिये। कमीशन का काम करने वालो से बचके रहना चाहिये। चाहे उनका कितना भी बडा नाम क्यो न हो। एक बार मे एक वनौषधी से शुरुआत सही होती है। ऐसा नही कि आप नीम भी ले, बेल भी और जामुन भी। मौसमी फलो को ले। साल भर नाना प्रकार के फल मिलते रहते है। जब जामुन का मौसम न हो तो किसी भी रुप मे जामुन खाने की बजाय उस मौसम का फल खाइये।
अपने रोगियो को निपटाने के बाद विशेषज्ञ मेरी ओर मुखातिब हुये। हाथ जोडकर बोले कि आपने इस विषय मे इतना लिखा है इसलिये आपसे एक विनती है। मै तीन बून्दो वाला नुस्खा आपके सामने रखना चाहता हूँ, आप अपनी राय बताये। मेरे हामी भरने पर वे बोले कि मै बोगनवीलिया की पत्ती, उस काँटे वाली वनस्पति की पत्ती और आइक्सोरा के फूल का रस रोगियो को देता हूँ। उस काँटे वाली वनस्पति की पहचान मैने आमतौर से बागीचे मे उगने वाले सेंसीवेरिया के रुप मे की। मैने उनसे कहा कि आप किस आधार पर इन तीनो को मिलाते है? बोगनवीलिया और सेंसीवेरिया तो भारतीय मूल की वनस्पति नही है। आइक्सोरा की यह प्रजाति भी भारतीय नही लगती है। यह भारतीय पारम्परिक ज्ञान नही है। बोगनवीलिया को मधुमेह के लिये उपयोगी आजकल लोग बताने लगे है पर इसका कोई वैज्ञानिक और पारम्परिक आधार नही मिलता है। सेंसीवेरिया को जहरीला पौधा माना जाता है। विदेशो मे तो विशेषज्ञ इसे घर के बागीचे मे न लगाने की सलाह देते है क्योकि यह बच्चो और पालतू जानवरो के लिये नुकसानदायक हो सकता है। आइक्सोरा से मधुमेह के इलाज के विषय मे भी मुझे संश्य ही है। इस पर विशेषज्ञ ने कहा कि मैने अपनी परिकल्पना के आधार पर इसे बनाया है। मैने बिना देरी के कहा कि यह आपकी परिकल्पना न जाने कितनो के लिये अभी तक जानलेवा साबित हो चुकी होगी। भगवान जाने ऐसा मनमाना मिश्रण शरीर के अन्दर क्या गुल खिला रहा होगा? यह तो सरासर अपराध है मानव जीवन से खिलवाड का।
इस बीच दूसरे गाँव वाले भी आ गये। उन्होने मेरी बात सुनी तो विशेषज्ञ को समझाया कि भगवान का दिया सब कुछ है फिर चन्द पैसो के लालच मे यह गलत काम क्यो कर रहे हो? मुझे बताया गया कि वह विशेषज्ञ (अब तो उसे विशेषज्ञ कहना भी बेमानी लगता है) दसो एकड जमीन का मालिक है। धान और वनोपज का खरीददार है। उसकी ट्रके चलती है। महुवे की शराब और मुर्गियो का कारोबार है। और न जाने क्या-क्या धन्धे है। लडका फर्जी चिकित्सक है। बाप-बेटे मिलकर इस तीन बून्द वाले नुस्खे से लोगो को बेवकूफ बनाते है। इसके लिये बकायदा उन्होने आदमी रखे हुये है जो शहरो से रोगी पकड के लाते है।
मेरे मित्र भी सब कुछ सुन रहे थे। उन्होने कुछ दिनो पहले ही तीन बून्दो का सेवन किया था। मेरी बाते सुनकर उन्हे उबकाई आने लगी। मानो अभी वे बून्दे पेट मे हो। वे बडा असहज महसूस कर रहे थे। मै उन्हे लेकर डूमर के वृक्ष के पास गया जहाँ बन्दरो ने फल खाकर नीचे फेके थे। ताजे डूमर के फल एकत्र किये और छककर खाये। मित्र ने पूछा कि इससे तीन बून्दो का जहर तो उतर जायेगा पर क्या मधुमेह मे भी लाभ होगा? मैने कहा कि इससे शरीर को लाभ होगा। शरीर को लाभ होगा तो मधुमेह मे लाभ तो होगा ही। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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तीन बून्दो से डायबीटीज का शर्तिया इलाज, जामुन की बाते और विष की सफाई
“तीन बून्द, केवल तीन बून्द से किसी भी प्रकार की डायबीटीज का जड से इलाज हो सकता है।“मेरे एक मित्र को जब मधुमेह पर लिखी जा रही लम्बी-चौडी रपट के विषय मे पता चला तो उन्होने एक विशेषज्ञ के बारे मे यह बताया। मैने पूछा कि क्या वे पारम्परिक चिकित्सक है या आधुनिक चिकित्सक? वे बोले कि पारम्परिक चिकित्सक के आस-पास है। पूरी तरह से पारम्परिक चिकित्सक नही है। यदि आप चाहो तो मै आपको उनके पास ले चलता हूँ। तीन बून्द मे डायबीटीज का जड से इलाज, ऐसा दावा करने वाले से मिलने मे भला क्या बुराई है? विशेषज्ञ मेरे शहर से सैकडो किलोमीटर की दूरी पर थे। सो, मुँह अन्धेरे ही हम उस ओर निकल पडे।
काफी दूरी तय करने के बाद हम विशेषज्ञ के ठिकाने पर आ पहुँचे। हमने उन्हे आने के विषय मे बताया नही था। हम आम रोगी बनकर जाना चाहते थे। उनके घर के सामने कुछ रोगी बैठे हुये थे। वे सभी हमारी तरह दूर से आये थे। एक तैतीस वर्षीय रोगी ने बताया कि उसके पूरे परिवार को डायबीटीज है। वह एलोपैथी की दवाए तो खाता ही है साथ ही हर उस व्यक्ति की सलाह मानता है जो जडी-बूटी के बारे मे बताता है। उसने तीन महिने तक बेल की पत्तियो के रस का सेवन किया था। फिर बोगनवीलीया की पत्तियो का रस भी पी गया था। गेहूँ का रस पी रहा था और साथ ही नोनी जैसे उत्पाद पर भी पैसे बहा रहा था। हम उसकी प्रयोगधर्मिता पर भौचक्क थे। हमे उसके पैंक्रियाज पर भी दया आ रही थी। पता नही कैसे-कैसे दिन उसे और देखने होंगे?
वह युवक हमसे बाते करते वक्त बार-बार छोटी सी मशीन को शरीर मे चुभोने को आतुर दिखता था। मुझे तो वह मधुमेह से ज्यादा “मधुमेह के भय” का मारा दिखा। यह भय खतरनाक है। यदि रोगी पढा-लिखा हो तो यह भय मधुमेह से ज्यादा उस पर हावी हो जाता है। शरीर बेवजह ही बोझ महसूस करने लगता है। पता नही बेल की पत्तियो के रस ने उसके शरीर का क्या हाल किया होगा?
बहरहाल, विशेषज्ञ को अपने दवाखाने मे आने मे समय था तो हम गाँव भ्रमण के लिये निकल पडे। इस बार मानसून मे देरी के कारण जामुन अभी तक नही शहरो मे नही आया है। गाँव मे जामुन से वृक्ष लदे हुये थे। फलो को तोडकर शहर ले जाने की तैयारियाँ हो रही थी। ग्रामीणो ने बताया कि शहर मे जामुन हाथो=हाथ बिक जाता है। शहर रोगो का घर है और यह फल रोगो को दूर रखता है। मधुमेह मे इसकी विशेष भूमिका है। मधुमेह के रोगी तो इस पर टूट पडते है। पेट भरने के बाद भी इसे खाते रहते है इस तर्ज पर कि मानो आज ही उन्हे मधुमेह से छुटकारा मिल जायेगा। फिर वे गुठलियो को रख लेते है। साल भर गुठलियो का चूर्ण के रुप मे सेवन करते रहते है। बिना किसी से पूछे और बिना किसी को बताये। इस पर मधुमेह की चिकित्सा मे पारंगत पारम्परिक चिकित्सक खूब हँसते है। वे कहते है कि “जामुन खाने की कला” के बारे मे लोग नही जानते है। जामुन कब खाना, कब नही खाना, जामुन खाने के बाद क्या पीना और क्या नही पीना, भोजन मे किस तरह का परहेज करना आदि-आदि जाने और समझे बिना शहरी रोगी बस खाने के लिये टूट पडते है। जामुन की गुठली यदि ठीक से नही चुनी गयी हो तो पेट और किडनी की कई प्रकार की बीमारियाँ हो सकती है। जामुन प्राकृतिक है, इसके ये तो मायने बिल्कुल नही है कि इससे केवल लाभ ही होगा। यह औषधी है तो इसे खाने की विधि होगी। उम्र के अनुसार अलग-अलग मात्रा होगी।
सबसे पहले तो जामुन स्वाद लेकर आराम से खाना चाहिये। हडबडी मे ज्यादा जामुन खाने की बजाय आराम से खाये गये जामुन ज्यादा लाभदायक है। जामुन पके होने चाहिये न कि बाजार की माँग के अनुसार शाखाओ से गिराये गये अधपके जामुन। शहरो मे तो जामुन पर मख्खियाँ भिनभिनाती रहती है। जब ठेले वालो को डाँटो तो वे कहते है कि जामुन को ढककर रखेंगे तो लोग कैसे जान पायेंगे कि हम जामुन बेच रहे है। मुझे अपनी रपट याद आती है जिसमे मैने जामुन के उन पक्षो के बारे मे विस्तार से लिखा है जिनके बारे मे प्राचीन चिकित्सा विशेषज्ञ शायद लिखना भूल गये थे।
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अगले रोगी को वे आवाज देते इससे पहले मित्र ने राज खोला और मेरा परिचय दिया कि ये वैज्ञानिक है और मधुमेह से सम्बन्धित पारम्परिक चिकित्सकीय ज्ञान की रपट बना रहे है। इन्होने करोडो पन्ने मधुमेह पर लिखे है और अभी भी लिख रहे है। विशेषज्ञ ने परिचय सुन हाथ खडे करना ही ठीक समझा।
मैने अपनी रपट मे हजारो पारम्परिक चिकित्सको से मुलाकात से प्राप्त अनुभव को शामिल किया है। मुझे एक भी ऐसा पारम्परिक चिकित्सक नही मिला जिसने कुछ दिनो या चन्द दवाओ से इस मर्ज को ठीक करने का दावा किया हो। ज्यादातर ने तो साफ शब्दो मे कहा कि यदि कोई ऐसा दावा करे तो वह महज लफ्फाजी होगी। मेरी रपट मे वनौषधीयो का वर्णन तो है ही पर साथ मे सही वनौषधीयो के चुनाव पर काफी विस्तार से लिखा गया है। वनौषधीयो के प्रयोग के साथ कैसा भोजन लेना है, यह भी महत्वपूर्ण है। आज का शहरी मधुमेह रोगी मनचाहा भोजन करता है। अंग्रेजी दवाए तो लेता ही है पर साथ ही अपने अधकचरे ज्ञान से जडी-बूटियाँ भी लेता रहता है। यह मधुमेह से लडने की शरीर की क्षमता को कम कर देता है। शरीर रसायनो के सामने धराशायी हो जाता है। रोग से लडने की उसकी इच्छाशक्ति एक तरह से मर जाती है। वह रसायनो पर आश्रित हो जाता है। शरीर की एक बार ऐसी दशा हो गयी तो इससे बाहर निकलना बडा ही मुश्किल होता है। मधुमेह का पता लगते ही दवाओ का आश्रय लेने की बजाय शरीर को स्वस्थ्य बनाने की ओर ध्यान देना चाहिये। ऐसा करने से कुछ समय मे ही मधुमेह से लडने के लिये शरीर तैयार हो जाता है। फिर विशेषज्ञो की राय लेकर ही वनौषधीयो का सेवन करना चाहिये। सही विशेषज्ञो की सलाह लेनी चाहिये। कमीशन का काम करने वालो से बचके रहना चाहिये। चाहे उनका कितना भी बडा नाम क्यो न हो। एक बार मे एक वनौषधी से शुरुआत सही होती है। ऐसा नही कि आप नीम भी ले, बेल भी और जामुन भी। मौसमी फलो को ले। साल भर नाना प्रकार के फल मिलते रहते है। जब जामुन का मौसम न हो तो किसी भी रुप मे जामुन खाने की बजाय उस मौसम का फल खाइये।
अपने रोगियो को निपटाने के बाद विशेषज्ञ मेरी ओर मुखातिब हुये। हाथ जोडकर बोले कि आपने इस विषय मे इतना लिखा है इसलिये आपसे एक विनती है। मै तीन बून्दो वाला नुस्खा आपके सामने रखना चाहता हूँ, आप अपनी राय बताये। मेरे हामी भरने पर वे बोले कि मै बोगनवीलिया की पत्ती, उस काँटे वाली वनस्पति की पत्ती और आइक्सोरा के फूल का रस रोगियो को देता हूँ। उस काँटे वाली वनस्पति की पहचान मैने आमतौर से बागीचे मे उगने वाले सेंसीवेरिया के रुप मे की। मैने उनसे कहा कि आप किस आधार पर इन तीनो को मिलाते है? बोगनवीलिया और सेंसीवेरिया तो भारतीय मूल की वनस्पति नही है। आइक्सोरा की यह प्रजाति भी भारतीय नही लगती है। यह भारतीय पारम्परिक ज्ञान नही है। बोगनवीलिया को मधुमेह के लिये उपयोगी आजकल लोग बताने लगे है पर इसका कोई वैज्ञानिक और पारम्परिक आधार नही मिलता है। सेंसीवेरिया को जहरीला पौधा माना जाता है। विदेशो मे तो विशेषज्ञ इसे घर के बागीचे मे न लगाने की सलाह देते है क्योकि यह बच्चो और पालतू जानवरो के लिये नुकसानदायक हो सकता है। आइक्सोरा से मधुमेह के इलाज के विषय मे भी मुझे संश्य ही है। इस पर विशेषज्ञ ने कहा कि मैने अपनी परिकल्पना के आधार पर इसे बनाया है। मैने बिना देरी के कहा कि यह आपकी परिकल्पना न जाने कितनो के लिये अभी तक जानलेवा साबित हो चुकी होगी। भगवान जाने ऐसा मनमाना मिश्रण शरीर के अन्दर क्या गुल खिला रहा होगा? यह तो सरासर अपराध है मानव जीवन से खिलवाड का।
इस बीच दूसरे गाँव वाले भी आ गये। उन्होने मेरी बात सुनी तो विशेषज्ञ को समझाया कि भगवान का दिया सब कुछ है फिर चन्द पैसो के लालच मे यह गलत काम क्यो कर रहे हो? मुझे बताया गया कि वह विशेषज्ञ (अब तो उसे विशेषज्ञ कहना भी बेमानी लगता है) दसो एकड जमीन का मालिक है। धान और वनोपज का खरीददार है। उसकी ट्रके चलती है। महुवे की शराब और मुर्गियो का कारोबार है। और न जाने क्या-क्या धन्धे है। लडका फर्जी चिकित्सक है। बाप-बेटे मिलकर इस तीन बून्द वाले नुस्खे से लोगो को बेवकूफ बनाते है। इसके लिये बकायदा उन्होने आदमी रखे हुये है जो शहरो से रोगी पकड के लाते है।
मेरे मित्र भी सब कुछ सुन रहे थे। उन्होने कुछ दिनो पहले ही तीन बून्दो का सेवन किया था। मेरी बाते सुनकर उन्हे उबकाई आने लगी। मानो अभी वे बून्दे पेट मे हो। वे बडा असहज महसूस कर रहे थे। मै उन्हे लेकर डूमर के वृक्ष के पास गया जहाँ बन्दरो ने फल खाकर नीचे फेके थे। ताजे डूमर के फल एकत्र किये और छककर खाये। मित्र ने पूछा कि इससे तीन बून्दो का जहर तो उतर जायेगा पर क्या मधुमेह मे भी लाभ होगा? मैने कहा कि इससे शरीर को लाभ होगा। शरीर को लाभ होगा तो मधुमेह मे लाभ तो होगा ही। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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Updated Information and Links on March 03, 2012
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aapki aage ki baat ka intezaar rahega...
अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा