समागम से समाधि तक महत्व है घठा वृक्ष का
मेरी जंगल डायरी से कुछ पन्ने-34
- पंकज अवधिया
समागम से समाधि तक महत्व है घठा वृक्ष का
दल से एकदम अलग एक बूढा बन्दर एक सफेद छाल वाले वृक्ष पर बैठा था। बैठा क्या था, वह तो तने से लिपटा हुआ था। शायद वह आराम कर रहा था। मैने अपना कैमरा निकाला और उसकी तस्वीर लेने की कोशिश की। जूम किया तो मुझे बन्दर की गतिविधियाँ सन्दिग्ध लगी। मैने साथ चल रहे स्थानीय व्यक्ति से इस बारे मे पूछा तो उसने भी इस गतिविधि को अजीब बताया। पारम्परिक चिकित्सको से जब पूछा तो वे बोले कि ऐसे बहुत से वृक्ष है इस जंगल मे। आप इस वृक्ष को छूकर देखे तब आपको असलियत पता चलेगी। मै आगे बढा और तने को छुआ। तना बर्फ के समान ठन्डा था। पारम्परिक चिकित्सको के कहने पर मैने कपडे उतारे और नगे बदन ही वृक्ष की ऊपर की डालियो पर लेट गया। ऐसा लग रहा था मानो मै बर्फ पर लेटा हुआ हूँ। पर असली बर्फ की तरह लेटे रहने मे मुश्किल नही हो रही थी। कुछ समय मे ही तरोताजा महसूस होने लगा। मै इस वृक्ष की शीतलता से हैरान था। मेरे बाद पारम्परिक चिकित्सको ने भी इसका लाभ उठाने मे जरा भी देरी नही की।
पारम्परिक चिकित्सको ने खुलासा किया कि आम लोगो को अपनी जीवनी क्षमता के अनुसार इस वृक्ष पर समय बिताना चाहिये। इससे शरीर की अनावश्यक गर्मी शांत हो जाती है। बन्दर इस वृक्ष को पीढीयो से जानते है इसलिये वे इसका भरपूर लाभ उठाते है। अभी सुबह की हल्की बारिश के बाद वातावरण मे उमस है। इसी उमस ने बाल वाले बूढे बन्दर को परेशान कर रखा है। बन्दर ने अब इस वृक्ष का सहारा लिया है। इस क्षेत्र मे इसे “घठा” के नाम से जानते है पर छत्तीसगढ मे ही इसे अलग-अलग भागो मे अलग-अलग नामो से जाना जाता है। मैने इसकी हजारो तस्वीरे ली है पर दूर से तस्वीर लेने के कारण मैने कभी इसे छू कर नही देखा आज की तरह। यही कारण है कि मै इसकी अनोखी शीतलता से अनजान रहा। बूढे बन्दर ने भी ध्यान खीचा। मैने अपने अनुभवो से यह सीखा है कि जंगल मे किसी भी गतिविधि को देखते समय “क्यो” का ध्यान रखाना चाहिये। जिज्ञासु बने रहने पर निश्चित ही समाधान प्राप्त हो जाता है।
मेरे मित्र के एक रिश्तेदार टोरंटो मे रहते है। वे पेशे से चिकित्सक है। उनका कहना है कि हाइपर टेंशन इस दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी है। दस साल के बच्चो से लेकर नब्बे साल के बूढे तक को इस नव-रोग ने जकड रखा है। यही अन्य रोगो की जड भी है। यही बात देश के पारम्परिक चिकित्सक भी कहते है। वे दवाओ के प्रयोग की बजाय रोगियो को शांति के कुछ पल गुजारने की बात कहते है। उन्होने घठा जैसे वृक्षो की छाँव मे बैठने की सलाह दी जाती है। दो घंटे भी खटिया डालकर इस वृक्ष के नीचे रोगी पडे रहे तो बडे से बडा तनाव समाप्त हो जाता है। हाँ, इस समय मोबाइल बन्द रखना जरुरी है-पारम्परिक चिकित्सक मुस्कुराकर कहते है। घठा से लिपट कर रहने की सलाह रक्त सम्बन्धी रोगो की चिकित्सा के दौरान भी की जाती है।
आपको आश्चर्य होगा कि पहले जब ये वृक्ष बहुतायत मे थे तब पारम्परिक चिकित्सक इसके समूहो को चिन्हित कर लेते थे। इन समूहो के नीचे मिट्टी की झोपडी बनायी जाती थी। इसकी छत खुली रखी जाती थी। विवाह के पहली रात वर और वधू को इसी झोपडी मे गुजारने के लिये कहा जाता था। पारम्परिक चिकित्सक बताते है कि समागम की प्रक्रिया मे उत्पन्न गर्मी पर इस वृक्ष की छाँव अनुकूल असर डालती है और इस प्रक्रिया की अवधि को अप्रत्याशित रुप से बढा देती है। वे पारम्परिक चिकित्सक जिनके पूर्वजो ने राजवैद्य की भूमिका निभायी है, बताते है कि राज परिवार आखेट के दौरान अपना तम्बू इसी वृक्ष समूह के पास लगाते थे। विवाह की पहली रात मे इस वृक्ष का महत्व तो है ही पर जीवनी शक्ति के अनुसार साल मे कई बार जोडे इस झोपडी मे रात गुजार सकते है। यहाँ यह बताना जरुरी है कि इस झोपडी को चारो ओर से क्यो घेरा जाता है? इसकी शीतलता के कायल वन्यजीव भी है। यही कारण है कि सुरक्षा के लिहाज से खुली छत वाली झोपडी पारम्परिक चिकित्सक अपनाते है।
मैने अपने सर्वेक्षणो के दौरान यह महसूस किया है कि आम लोग इसके बारे मे कम ही जानते है। यही कारण है कि इसकी लकडी को दूसरी लकडियो की तरह या तो भट्टियो मे फूँक दिया जाता है या घरो के निर्माण मे प्रयोग कर लिया जाता है। इसके कारण हाल के दशको मे इनकी संख्या मे कमी आयी है। इसकी लकडी के भी ढेरो औषधीय उपयोग है। पर इस बारे मे पारम्परिक चिकित्सक बताना नही चाहते है। उन्हे डर है कि शहरियो को इस बारे मे पता चलते ही इस वृक्ष का सफाया हो जायेगा। वे इससे सम्बन्धित ज्ञान का दुरुपयोग न होने देने की शर्त पर बताते है कि रोग की अंतिम अवस्था मे जब सारी औषधीयाँ बेकार सिद्ध होती है तब अंतिम उपाय के तौर पर इसकी लकडी से बनी खाट मे रोगी को लिटा दिया जाता है। उसके हाथ-पैर मे जडो का लेप लगाया जाता है और तनो का पानी पीने को दिया जाता है। वे दावा करते है कि इससे बहुत से मामलो मे लाभ होते देखा गया है। लाभ के लक्षण दिखते ही रोगी की चिकित्सा नये सिरे से आरम्भ की जाती है। बहुत से पारम्परिक चिकित्सक रोगी की मृत्यु के बाद शव के साथ इसकी लकडी का एक टुकडा रख देते है। बहुत पूछने पर भी वे इसका कारण नही बताते है।
घठा के फल खाये नही जाते है। इन्हे जहरीला माना जाता है। इसके विष को दूर करके इससे औषधीयाँ बनायी जाती है पर इसमे बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। इसलिये पारम्परिक चिकित्सक विकल्पो का प्रयोग करते है। घठा के विषय मे यह दिव्य ज्ञान आज तक वैज्ञानिक साहित्यो तक क्यो नही पहुँचा, यह समझ से परे है। हजारो शोधकर्ताओ ने इसके बारे मे लिखा है पर इसके औषधीय गुणो के बारे मे एक पंक्ति भी नही मिलती है। घठा के बारे मे अब तक एकत्र की गयी जानकरियो के आधार पर “घठा पुराण’ की रचना की जा सकती है। पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि वर्तमान पीढी इतनी अधिक सौभाग्यशाली नही है कि सभी को इसका लाभ मिल सके। वर्तमान पीढी इस वृक्ष का व्यापक पैमाने पर रोपण करके आने वाली पीढी को बतौर उपहार इसे दे सकती है। आने वाली पीढी मे तो तनाव चरम पर होगा। ऐसे मे घठा का उपहार उन्हे स्वस्थ्य रखेगा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
© सर्वाधिकार सुरक्षित
- पंकज अवधिया
समागम से समाधि तक महत्व है घठा वृक्ष का
दल से एकदम अलग एक बूढा बन्दर एक सफेद छाल वाले वृक्ष पर बैठा था। बैठा क्या था, वह तो तने से लिपटा हुआ था। शायद वह आराम कर रहा था। मैने अपना कैमरा निकाला और उसकी तस्वीर लेने की कोशिश की। जूम किया तो मुझे बन्दर की गतिविधियाँ सन्दिग्ध लगी। मैने साथ चल रहे स्थानीय व्यक्ति से इस बारे मे पूछा तो उसने भी इस गतिविधि को अजीब बताया। पारम्परिक चिकित्सको से जब पूछा तो वे बोले कि ऐसे बहुत से वृक्ष है इस जंगल मे। आप इस वृक्ष को छूकर देखे तब आपको असलियत पता चलेगी। मै आगे बढा और तने को छुआ। तना बर्फ के समान ठन्डा था। पारम्परिक चिकित्सको के कहने पर मैने कपडे उतारे और नगे बदन ही वृक्ष की ऊपर की डालियो पर लेट गया। ऐसा लग रहा था मानो मै बर्फ पर लेटा हुआ हूँ। पर असली बर्फ की तरह लेटे रहने मे मुश्किल नही हो रही थी। कुछ समय मे ही तरोताजा महसूस होने लगा। मै इस वृक्ष की शीतलता से हैरान था। मेरे बाद पारम्परिक चिकित्सको ने भी इसका लाभ उठाने मे जरा भी देरी नही की।
पारम्परिक चिकित्सको ने खुलासा किया कि आम लोगो को अपनी जीवनी क्षमता के अनुसार इस वृक्ष पर समय बिताना चाहिये। इससे शरीर की अनावश्यक गर्मी शांत हो जाती है। बन्दर इस वृक्ष को पीढीयो से जानते है इसलिये वे इसका भरपूर लाभ उठाते है। अभी सुबह की हल्की बारिश के बाद वातावरण मे उमस है। इसी उमस ने बाल वाले बूढे बन्दर को परेशान कर रखा है। बन्दर ने अब इस वृक्ष का सहारा लिया है। इस क्षेत्र मे इसे “घठा” के नाम से जानते है पर छत्तीसगढ मे ही इसे अलग-अलग भागो मे अलग-अलग नामो से जाना जाता है। मैने इसकी हजारो तस्वीरे ली है पर दूर से तस्वीर लेने के कारण मैने कभी इसे छू कर नही देखा आज की तरह। यही कारण है कि मै इसकी अनोखी शीतलता से अनजान रहा। बूढे बन्दर ने भी ध्यान खीचा। मैने अपने अनुभवो से यह सीखा है कि जंगल मे किसी भी गतिविधि को देखते समय “क्यो” का ध्यान रखाना चाहिये। जिज्ञासु बने रहने पर निश्चित ही समाधान प्राप्त हो जाता है।
मेरे मित्र के एक रिश्तेदार टोरंटो मे रहते है। वे पेशे से चिकित्सक है। उनका कहना है कि हाइपर टेंशन इस दुनिया की सबसे खतरनाक बीमारी है। दस साल के बच्चो से लेकर नब्बे साल के बूढे तक को इस नव-रोग ने जकड रखा है। यही अन्य रोगो की जड भी है। यही बात देश के पारम्परिक चिकित्सक भी कहते है। वे दवाओ के प्रयोग की बजाय रोगियो को शांति के कुछ पल गुजारने की बात कहते है। उन्होने घठा जैसे वृक्षो की छाँव मे बैठने की सलाह दी जाती है। दो घंटे भी खटिया डालकर इस वृक्ष के नीचे रोगी पडे रहे तो बडे से बडा तनाव समाप्त हो जाता है। हाँ, इस समय मोबाइल बन्द रखना जरुरी है-पारम्परिक चिकित्सक मुस्कुराकर कहते है। घठा से लिपट कर रहने की सलाह रक्त सम्बन्धी रोगो की चिकित्सा के दौरान भी की जाती है।
आपको आश्चर्य होगा कि पहले जब ये वृक्ष बहुतायत मे थे तब पारम्परिक चिकित्सक इसके समूहो को चिन्हित कर लेते थे। इन समूहो के नीचे मिट्टी की झोपडी बनायी जाती थी। इसकी छत खुली रखी जाती थी। विवाह के पहली रात वर और वधू को इसी झोपडी मे गुजारने के लिये कहा जाता था। पारम्परिक चिकित्सक बताते है कि समागम की प्रक्रिया मे उत्पन्न गर्मी पर इस वृक्ष की छाँव अनुकूल असर डालती है और इस प्रक्रिया की अवधि को अप्रत्याशित रुप से बढा देती है। वे पारम्परिक चिकित्सक जिनके पूर्वजो ने राजवैद्य की भूमिका निभायी है, बताते है कि राज परिवार आखेट के दौरान अपना तम्बू इसी वृक्ष समूह के पास लगाते थे। विवाह की पहली रात मे इस वृक्ष का महत्व तो है ही पर जीवनी शक्ति के अनुसार साल मे कई बार जोडे इस झोपडी मे रात गुजार सकते है। यहाँ यह बताना जरुरी है कि इस झोपडी को चारो ओर से क्यो घेरा जाता है? इसकी शीतलता के कायल वन्यजीव भी है। यही कारण है कि सुरक्षा के लिहाज से खुली छत वाली झोपडी पारम्परिक चिकित्सक अपनाते है।
मैने अपने सर्वेक्षणो के दौरान यह महसूस किया है कि आम लोग इसके बारे मे कम ही जानते है। यही कारण है कि इसकी लकडी को दूसरी लकडियो की तरह या तो भट्टियो मे फूँक दिया जाता है या घरो के निर्माण मे प्रयोग कर लिया जाता है। इसके कारण हाल के दशको मे इनकी संख्या मे कमी आयी है। इसकी लकडी के भी ढेरो औषधीय उपयोग है। पर इस बारे मे पारम्परिक चिकित्सक बताना नही चाहते है। उन्हे डर है कि शहरियो को इस बारे मे पता चलते ही इस वृक्ष का सफाया हो जायेगा। वे इससे सम्बन्धित ज्ञान का दुरुपयोग न होने देने की शर्त पर बताते है कि रोग की अंतिम अवस्था मे जब सारी औषधीयाँ बेकार सिद्ध होती है तब अंतिम उपाय के तौर पर इसकी लकडी से बनी खाट मे रोगी को लिटा दिया जाता है। उसके हाथ-पैर मे जडो का लेप लगाया जाता है और तनो का पानी पीने को दिया जाता है। वे दावा करते है कि इससे बहुत से मामलो मे लाभ होते देखा गया है। लाभ के लक्षण दिखते ही रोगी की चिकित्सा नये सिरे से आरम्भ की जाती है। बहुत से पारम्परिक चिकित्सक रोगी की मृत्यु के बाद शव के साथ इसकी लकडी का एक टुकडा रख देते है। बहुत पूछने पर भी वे इसका कारण नही बताते है।
घठा के फल खाये नही जाते है। इन्हे जहरीला माना जाता है। इसके विष को दूर करके इससे औषधीयाँ बनायी जाती है पर इसमे बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। इसलिये पारम्परिक चिकित्सक विकल्पो का प्रयोग करते है। घठा के विषय मे यह दिव्य ज्ञान आज तक वैज्ञानिक साहित्यो तक क्यो नही पहुँचा, यह समझ से परे है। हजारो शोधकर्ताओ ने इसके बारे मे लिखा है पर इसके औषधीय गुणो के बारे मे एक पंक्ति भी नही मिलती है। घठा के बारे मे अब तक एकत्र की गयी जानकरियो के आधार पर “घठा पुराण’ की रचना की जा सकती है। पारम्परिक चिकित्सक कहते है कि वर्तमान पीढी इतनी अधिक सौभाग्यशाली नही है कि सभी को इसका लाभ मिल सके। वर्तमान पीढी इस वृक्ष का व्यापक पैमाने पर रोपण करके आने वाली पीढी को बतौर उपहार इसे दे सकती है। आने वाली पीढी मे तो तनाव चरम पर होगा। ऐसे मे घठा का उपहार उन्हे स्वस्थ्य रखेगा। (क्रमश:)
(लेखक कृषि वैज्ञानिक है और वनौषधीयो से सम्बन्धित पारम्परिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण मे जुटे हुये है।)
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